
इन्कलाबी मजदूर केन्द्र के खीमानन्द
ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर आदिवासियों को अपना दुश्मन मानकर सरकार उन पर युद्ध थोप रही है तथा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के साथ मिलकर उन्हें उनके अधिकारों से बेदखल कर रही है। देश में जिस तरह से समाजवाद तथा कम्युनिस्ट शब्द को बदनाम कर दिया गया है उससे इसके पीछे का रचा जा रहा षडयन्त्र अब साफ हो रहा है। यह युद्ध केवल आदिवासी इलाकों की क्रान्तिकारी शक्तियों का ही दमन नहीं है अपितु यह पूरे भारत में काम कर रही क्रान्तिकारी शक्तियों का दमन है। इसके खिलाफ एकजुट होकर जन कार्यवाही करने की जरूरत है। जिस तरह से पूंजीवाद संकट की ओर जा रहा है उसका प्रतिवादी होना अपरिहार्य है। इस स्थिति में जनता का दमन बढ़ेगा। जिसके लिये हमें तैयार रहना होगा तथा जनवादी संगठनों, न्याय पसंद लोगों एवं वुद्धिजीवियों को इसका विरोध करना होगा। क्रांति मजदूर वर्ग के नेतृत्व मे होती है और हमें मजदूर वर्ग को संगठित करके देश में व्यवस्था परिवर्तन के संघर्ष को मुकाम तक पहुचाना होगा।

,राजनैतिक बंदी रिहाई कमेटी के एड0 दीवान धपोला ने कहा कि ग्रीन हंट, सलवा जुडूम का विरोध करने
वाले एवं जन सरोकारों से सम्बन्ध रखने वाले लोगांे के प्रति सरकार तथा विपक्ष जो कार्यवाही कर रहा है उसके खिलाफ यह कार्यक्रम एक आवश्यकता है। आज इस तरह के कन्वेन्शन द्वारा अगला रास्ता तैयार किया जाना अत्यन्त आवश्यक है। इस भूमिका को भी हम लोगांे ने ही निभाना है। आज के हालातों के अनुसार लोग इन परिस्थितियों से जी चुरा रहे हैं। वह पैसिव हो रहे हैं। माना की 60 साल का बुजुर्ग कुछ नहीं कर सकता लेकिन वह अन्याय के खिलाफ लड़ रही युवा पीढ़ी को मोरल सपोर्ट तो दे सकता है। हम अप्रत्यक्ष रूप से नई पीढ़ी की मदद कर सकते हैं। लेकिन नहीं। आज जो समाज के लिये काम करता है उसकी दुगर्ति उसके परिवार तथा उसके दोस्तों से ही शुरू हो जाती है। उत्तराखण्ड राज्य यहां की जनता ने बड़ी मेहनत से प्राप्त किया है। लेकिन विगत दस सालों में यहां पुलिस फोर्स की संख्या बढ़ी है आईएएस की संख्या बढ़ी है। बजट का अधिकांश भाग टीए डीए में ही जा रहा है। पहाड़ों में आईटीबीपी एसएसबी के मुख्यालय बन गये लेकिन जनता को मिलने वाली सुविधायें नहीं बढ़ी। कुछ साल पहले संघर्ष करने वाले लोग भी थे तथा उनके मददगार भी थे। लेकिन आज परिस्थितियां इसके विपरीत हैं। हमें यह सोचना चाहिये कि हम किस तरह से सोसिलिस्टों की मदद के लिये आगे आ सकते हैं।

आरडीएफ के प्रदेश महासचिव केसर राना ने कहा कि आज समय जिस दौर में है उस
दौर में पूरा भारत एक ज्वालामुखी पर बैठा है। देश मंे उत्पीड़न की सीमायें तेज हो रही है। कॉरपोरेट जगत जो चाह रहा है शासक वर्ग वही कर रहा है। छत्तीसगढ़ तथा झारखण्ड इसके जीते जागते उदाहरण हैं। इन इलाकों में वेदान्ता तथा पास्को जैसी कम्पनियों ने आदिवासियों का जीना दूभर कर दिया है। कमीशन पाने के लिये शासक वर्ग कॉरपोरेट जगत की सेवा कर रहा है। यह खनिज प्रदेशों में खास तौर से देखा जा सकता है। जो उनके खिलाफ बोल रहा है उसे देशद्रोही बताया जा रहा है। अभी कुछ दिनों पूर्व कश्मीर मुद्दे पर अरून्धती रॉय ने अपना वकत्व्य जारी किया और तमाम शासक वर्ग के आंखों की किरकिरी बन गई। जो लोग कश्मीर या माओवादियों के समर्थन में बोल रहे हैं उनका रास्ता जेलों की ओर जा रहा है। देश में बेरोजगारी, युवाओं के सवालों को अनदेखा किया जा रहा है। जो लोग बंगाल, छत्तीसगढ़ या झारखण्ड में लड़ रहे हैं उन्होंने लड़ाई को ही जारी नहीं बल्कि लड़ाई के पैमाने को भी बदला है। आज विचारों को भी सेंसर किया जा रहा है। यदि कोई मार्क्स, लेनिन, लोहिया, जेपी, माओ के विचारों को मानता है तो हर किसी को किसी भी विचार को मानने की आजादी होनी चाहिये।
उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के गोविन्द लाल वर्मा ने कहा कि मैं तो यह समझता हू कि
इस देश की सत्ता गोरी चमड़ी की जगह काली चमड़ी वालों के हाथ में आ गई है। हमें केवल राजनैतिक आजादी मिली सामाजिक नहीं। तमाम लोग मताधिकार का प्रयोग करके शासन तो बनाते हैं लेकिन शासक नहीं हो पाते। वास्तव में सत्ताधारी वह हैं जो अपनी पत्नी को 10 करोड़ की कोठी उपहार में दे सकते हैं या अपने बच्चे के जन्मदिन पर हवाई जहाज खरीद सकते हैं। जिसके दिन में तड़पन आती है वहीं अपना आक्रोश प्रकट कर सकता है। जब जनता के हक हकूकों की बात कहो तो शासक वर्ग कुचलने के लिये आ जाता है। जिस बात के लिये मध्य भारत तथा उत्तर पूर्वी भारत के लोग लड़ रहे हैं वो दमन से और भी अधिक बढे़गा।

उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के गोविन्द लाल वर्मा ने कहा कि मैं तो यह समझता हू कि

सोमनाथ सांस्कृतिक संगठन के मदन मोहन सनवाल अपनी बात को इस गीत के ने माध्यम से व्यक्त किया।

भारत देश में घुस गये रे बेईमान, नौजवानों जागो हो
नौजवानों जागो हो, बुद्धिमानों जागो हो
भारत देश में घुस गये रे बेईमान, नौजवानों जागो हो।
बिहार झारखण्ड और उड़ीसा, सीआरपीएफ दमन करे लूटती पुलिस
घर-घर कर दिये तबाह नौजवानों जागो हो
भारत देश में घुस गये रे बेईमान, नौजवान जागो हो।
जल जंगल की जो बात करेगा, पुलिस फौज के हाथ मरेगा
जनता हो गई परेशान, नौजवान जागो हो
भारत देश में घुस गये रे बेईमान नौजवान जागो हो।
रोजगार खाना नहीं मिलता, घर घर जा जनता को लूटते लूट मची है आज,
नौजवान जागो हो भारत देश में घुस गये रे जवान नौजवान जागो हो।
भारत देश में घुस गये रे बेईमान, नौजवान जागो हो।
जल जंगल की जो बात करेगा, पुलिस फौज के हाथ मरेगा
जनता हो गई परेशान, नौजवान जागो हो
भारत देश में घुस गये रे बेईमान नौजवान जागो हो।
रोजगार खाना नहीं मिलता, घर घर जा जनता को लूटते लूट मची है आज,
नौजवान जागो हो भारत देश में घुस गये रे जवान नौजवान जागो हो।
निर्दोषों को पकड़ ले जाते, मुठभेड़ बताकर खुद मार के आते कुचक्र चलना है आज,
नौजवान जागो हो भारत देश में घुस गये रे बेईमान, नौजवान जागो हो।
खून ए जिगर से धरती के लालों, धरती को लाल बनाने वालों ले लो लाल सलाम,
नौजवान जागो होभारत देश में घुस गये रे बेईमान, नौजवान जागो हो।
परिवर्तनकामी छात्र संगठन के कमलेश ने कहा कि जनता के खिलाफ सरकार पिछले कई सालों से सरकार आदिवासी इलाकों में चला रही है। सरकार के लिये यह विकास के लिये आवश्यक कत्लेआम है। पूंजीपतियों को फर्क नहीं पड़ता कि उनके लिये कितना कत्लेआम हो रहा है। यह उनके लिये कोई
अनोखी चीज नहीं है। हम लोगों को समझना होगा कि यह झारखण्ड, उड़ीसा या छत्तीसगढ़ नहीं बल्कि पूरे भारत की मेहनतकश जनता पर थोपा गया युद्ध है। सरकारों ने यह साफ कर दिया है कि वह अमेरिका में बैठे अपने रिश्तेदारों के लिये किसी भी हद तक जा सकते हैं। लेकिन इसका व्यापक प्रतिरोध नहीं हो रहा है। अगर इस बडे़ युद्ध को रोकना है तो श्रम को संगठित करना होगा। तभी हम विकास के उस मॉडल की ओर बढ़ पायेंगे जहां मजदूर विकास का प्रणेता होगा।

रचनात्मक शिक्षक मण्डल की केन्द्रीय कार्यकारिणी के सदस्य डा0 कपिलेश भोज ने कहा कि आज हम जिस दौर में ऑपरेशन ग्रीन हंट की बात कर रहे हैं उसे हमें व्यापक पहलू के स्तर तक
समझना होगा। उन्होंने कहा कि 1947 में सत्ता हस्तान्तरण के बाद लूट का नया आयोजन हुआ। हम 1947 को पूंजीवाद के नये चरण के रूप में देख सकते हैं। लेकिन दुनिया में कभी ऐसा नहीं हुआ है कि श्रमिकों के दमन का विकल्प न सोचा गया हो। सर्वप्रथम कार्लमार्क्स ने बताया कि पूंजीवाद का उपचार क्या है। दुनिया में कोई आदमी ऐसा नहीं है जो अच्छी जिन्दगी न चाहता हो लेकिन ऐसा नहीं होता। पूंजीवाद का जो विश्लेषण कार्लमार्क्स ने किया वह आपने आप में एक विज्ञान है। वो मुक्तिदायी सिद्धान्त है जो लेनिन ने रूस में और माओ ने चीन में लागू किया।
हिन्दुस्तान का जो वर्ग तकलीफों से जूझ रहा है वो अपने अन्तरविरोधों से भी जूझ रहा है। हमें यह देखना होगा कि जनता की बात करने वाली क्या कोई पार्टी मजबूत हो रही है या नहीं। किसी भी देश में जब दमन या उत्पीड़न होता है तो शासक वर्ग जनता की चेतना को शून्य करने का काम करता है। वही हिन्दुस्तान का शासक वर्ग भी कर रहा है। वर्तमान शिक्षा का ढांचा विद्यार्थियों को व्यक्तिवादी तथा भयग्रस्त बना रहा है। नशाखोरी से युवा वर्ग को नशेड़ी बनाया जा रहा है। जहां भी बदलाव आता है सबसे पहले वहां के शिक्षक, विद्यार्थी तथा वुद्धिजीवी अग्रणी भूमिका में होते हैं।

हिन्दुस्तान का जो वर्ग तकलीफों से जूझ रहा है वो अपने अन्तरविरोधों से भी जूझ रहा है। हमें यह देखना होगा कि जनता की बात करने वाली क्या कोई पार्टी मजबूत हो रही है या नहीं। किसी भी देश में जब दमन या उत्पीड़न होता है तो शासक वर्ग जनता की चेतना को शून्य करने का काम करता है। वही हिन्दुस्तान का शासक वर्ग भी कर रहा है। वर्तमान शिक्षा का ढांचा विद्यार्थियों को व्यक्तिवादी तथा भयग्रस्त बना रहा है। नशाखोरी से युवा वर्ग को नशेड़ी बनाया जा रहा है। जहां भी बदलाव आता है सबसे पहले वहां के शिक्षक, विद्यार्थी तथा वुद्धिजीवी अग्रणी भूमिका में होते हैं।
वरिष्ठ कवि नीलाभ ने कहा कि जिस तरह से घटनायें हो रही हैं उनमें शान्त रह पाना असम्भव है।
उन्होंने कहा कि मैं देश नहीं जानता, मैं लगातार सोचता हूॅं की देश क्या है। चंडीदास ने कहा है कि अगर कोई सत्य है तो वह मानुष सत्य है। लेकिन आज मानव ही मानव का दमन कर रहा है। कोई भी जनता अपना हक चाहती है। जनता जिस तरह से जीना चाहती है वह उसका अधिकार है। कश्मीर की जनता यदि चाहती है कि वह अपने ढंग से जिये तो ये अधिकार उसे क्यों नहीं मिलता ये सोच के परेशानी होती है। क्या आप लोगों ने उत्तराखण्ड इसलिये बनाया कि बिल्डर यहां आकर इसे लूटें। क्या हमने हत्यायें करने वाले लोग तैयार करने के लिये उत्तराखण्ड बनाया। अभी हम 94 किमी0 की यात्रा करके यहां पहुॅंचे हैं तो हमने देखा की पहाड़ जगह जगह से टूट गया है। जनता पर युद्ध कबसे शुरू हुआ। बिरसा मुण्डा भी जनता के युद्ध में शामिल था, भगत सिंह भी जनता के लिये लड़ा। हमारी दोस्त अरून्धती रॉय कहती है कि जिनका विकास हो रहा है उनसे पूछो। अगर गौर से अपने चारों और दिखेगा तो आपको विस्थापन दिखेगा जो युद्ध की पहली निशानी है। पंजाब, बिहार में धरपकड़ शुरू हुई है अब यहां भी होगी। पूर्वाेत्तर में केरल की फौज, उड़ीसा में पंजाब की फौज तथा झारखण्ड में और कहीं की फौज भेजकर अपने को अपनों के खिलाफ लड़ाया जा रहा है। और यह क्या नाम रखे गये हैं कोबरा स्कॉर्पियन kसारा चक्कर खनिजों का है झारखण्ड और आसपास के इलाकों में 4 ट्रिलियन बाक्साइट है। जिससे एक टन एल्यूमिनियम बनाने के लिये 1टन पानी, बेशुमार बिजली तथा बिजली के लिये बांध बनाने की आवश्यकता पडे़गी। जिससे बाद में हथियार बनायें जायेंगे। अब हमें तय करना है कि क्या हम सिर्फ हथियारों के लिये यह कीमत चुकायेंगे। भगवान ना करे कल अगर उत्तराखण्ड में भी कोई खनिज निकल आयेगा तो यहां भी यह सब शुरू हो जायेगा। पी चिदम्बरम गृह मंत्री बनने से पहले वेदान्ता के स्लीपिंग डायरेक्टर थे। वो साल में केवल दो मीटिंग अटैण्ड करते थे। जिसके लिये उन्हें 28 लाख रूपये मिलते थे। गृहमंत्री बनने के बाद उसने इस्तीफा दे दिया। जो लोग सोचते हैं कि जनता को ज्यादा समय तक मूर्ख बनाया जा सकता है तो वे सबसे बडे़ मूर्ख हैं। पंजाब तथा देश के अन्य हरित क्रांति वाले राज्यों में किसानों ने आत्महत्यायें की हैं। चिदम्बरम तो यह भी कहत है कि देश की 85 प्रतिशत जनसंख्या शहरों में आ जाये। अब कोई तुक तर्क ताल नहीं रह गया है। मुझे याद है शराब माफियाओं का विरोध कर रहे पत्रकार उमेश डोबाल की हत्या हुई थी। लेकिन शराब माफिया आज भी सक्रिय है। इलाहाबाद की सामाजिक कार्यकर्ता सीमा काफी समय से रिमांड पर चल रही है। उसे हर 15 दिन की रिमांड समाप्त होने के बाद फिर रिमांड पर ले लिया जाता है। उसका पति विश्व विजय भी गिरफतार कर लिया गया। कॉमरेड आजाद, हेम पांडे की हत्या कर दी गई। इलाहाबाद में अब कोई सीमा का नाम नहीं लेता हो सकता है यहां भी कोई प्रशान्त राही का नाम न लेता हो। अब तो सरकार ने जनता के लिये आन्दोलन करने वालों के खिलाफ प्रचार भी शुरू कर दिया है। वे कहते हैं कि माओवादी हर साल 15 हजार करोड़ रूपये की वसूली कर रहे हैं। तमाम समाचार पत्रों के माध्यम से प्रचार किया जा रहा है। जो विद्रोह कर रहा है वह राजद्रोही बताया जा रहा है। मैं तो कहता हू कि यह राजपत्रित आतंकवाद है। आपको एक वर्दी मिली है एक बंदूक मिली है और बस गोलियां बरसा रहे हैं। आज इंटरनेट से राई रत्ती जान सकते हैं। बीते दिनों होंडा कम्पनी के मजदूरों पर लाठीचार्ज हुआ। अब यह आग फूट रही है लेकिन मजदूर अभी एक सूत्र में नहीं हैं। मित्तल, जिंदल, टाटा सभी आपस में लड़ रहे हैं। लेकिन जब जनता की बात आती है तो ये सब एक हो जाते हैं। तो यह बहुत जरूरी है कि हम भी एक सूत्र में रहे। वो एक दो चार को मार सकते हैं। पचास सौ को बंद करा सकते हैं। लेकिन पूरे देश की आबादी को नहीं। इसलिये अब वे तरह तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। युद्ध में सब होता है और यह युद्ध है। लोग अब यह बात जान रहे हैं। वो जानना चाहते हैं ऐसा कौन सा रास्ता है जिससे विकास का रास्ता निकल सकता है।

उत्तराखण्ड वन पंचायत सरपंच संगठन के गोविन्द सिंह मेहरा ने अपनी बातों को अपने ही चुटीले अंदाज में
कहते हुए कहा कि हमने लूटतंत्र को लोकतंत्र मान लिया है। सरकार कह रही है हम पानी बचाने के लिये गांव गांव में नदियों पर चैक डैम बना रहे हैं। उसे सरकार की उपलब्धि बताया जा रहा है लेकिन चैक डैम गांव वाले अपने अपने घराट चलाने के लिये कई वर्षाें से बना रहे हैं। सरकार ने हमारी जल संस्कृति को नल संस्कृति तथा वन संस्कृति को धन संस्कृति में बदल दिया है। पेड़ लगाने के नाम पर पैसे लिये जा रहे हैं। हमें यह देखना होगा कि हम इन 10 सालों में कहां पहुॅंच गये हैं। जिन खेतों में कभी गेंहूॅं, धान होते थे आज वो भूमि कंकरीट के जंगल से पटी चुकी है। जल, जंगल और जमीन से जनता के अधिकार समाप्त कर दिये गये हैं।

क्रान्तिकारी लोक अधिकार संगठन के पीपी आर्या ने कहा कि भारत का पूंजीपति वर्ग जनता का दमन कर रहा है तथा जनता के लिये लड़ने वाले लोगों को राक्षस तथा अलगाववादी बताकर उन्हें भटका
रहा है। अब देश के एक कोने से दूसरे कोने तक यह युद्ध फैल रहा है और पुलिस दमन लगातार बढ़ता जा रहा है। लेकिन हमें यह देखना है कि जो हो रहा है क्या जनता उसका प्रतिकार कर रही है। क्या हमारा नेतृत्व जनता को गोलबंद कर सकता है या नहीं। हम शासक वर्ग को तानाशाह कह सकते हैं गालियां दे सकते हैं लेकिन हमें अपनी कमजोरियां नहीं दिखती। हमारे देश में एक टोकरा भर के क्रान्तिकारी दल हैं लेकिन हम एक दूसरे की बात नहीं सुनते। यह टटपूंजियां संकीर्णता क्यों आती है। क्या यह किसी की निजी ठेकेदारी है। हमें सबसे पहले अपनी कमजोरियां तलाशनी चाहिये। शासक वर्ग इतना बदहवास हो गया है कि वह आन्दोलन कर रही जनता पर बर्बरतापूर्वक लाठीचार्ज करवा रहा है। लेकिन वह यह नहीं जानता कि वह अनजाने में जनता को लाठी उठाना सीखा रहा है। जवाहर लाल नेहरू तथा मनमोहन सिंह को खड़ा कर देखिये। दोनों का बौनापन आपको दिख जायेगा। हमारी देश के जो संचालन केन्द्र हैं व्यापारिक केन्द्र हैं वहां क्रान्तिकारी नहीं हैं। हमें इन केन्द्रों पर भी सक्रियता बढ़ानी होगी। एक सच्चे योद्धा और मेहनतकश के रूप में हमारी जिम्मेदारी क्या है। हमें जनता को एक सूत्र मंे पिरोना होगा। देश में 40 करोड़ मजदूर हैं। जिन्हें हमें एक सूत्र में पिरोना होगा। पंूजीपतियों ने पहला हमला मजदूर पर ही क्यों किया। क्यों कि वे जानते थे कि मजदूर वर्ग संगठित हो सकता है। मजदूरों के बाद दूसरा हमला किसानों पर हुआ। सिंगूर, कलिंगनगर में जनता लड़ रही है। जो नाभि क्षेत्र है जो संचालन केन्द्र हैं वहां हमारी पकड़ कमजोर है। हमें नये नये संचालन केन्द्रों पर अपनी पकड़ मजबूत बनानी होगी। क्यों कि क्रान्तिकारी बरगद की पूजा नहीं करता वह नये भ्रूण को सींचता है।

राजनैतिक बंदी रिहाई कमेटी के पान सिंह ने कहा कि समाज के मजदूर वर्ग के बीच काम किये जाने कि जरूरत है। उड़ीसा, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ में दमन किया जा रहा है लेकिन भ्रूण रूप में ही सही जनता
की सत्ता का काम चल रहा है। उन्होंने दिखा दिया है कि जनता कभी याचक नहीं होती। लेकिन सरकार की इस भ्रूण को कुचलना चाहती है। उत्तराखण्ड में भी जब जब विकल्प की बात आई है दमन शुरू हुआ है। ग्रीन हंट के खिलाफ जनता की लड़ाई पूरे देश में चल रही है। राज्य में आपदा के समय जनता को देने के लिये जमीन नहीं है लेकिन टाटा, मित्तल को प्रदेश में उद्योग लगाने के लिये आमंत्रित किया जा रहा है।

आरडीएफ के केन्द्रीय महासचिव राजकिशोर ने कहा कि आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक व्यवस्था यदि अन्यायपूर्ण है तो वह जनता पर युद्ध है। ब्रिटिशकाल से ही यह ढांचा ऐसा खड़ा किया गया है।
भूमण्डलीकरण उदारीकरण के फलस्वरूप शोषण का विस्तार हो रहा है। भूमि का विकेन्द्रीकरण से केन्द्रीकरण हुआ है। जनता का प्रतिरोध भी बढ़ रहा है। आज नक्सलबाड़ी का आन्दोलन 22 राज्यों में फैल गया है। जो आन्दोलन नक्सलबाड़ी से शुरू हुआ वह माओवाद के रूप में फैल रहा है। जिसे विरोधी शक्तियां आतंकवाद, बलात्कारी कह कर प्रचारित कर रही हैं ताकि जनता उनसे घृणा करे। यह जनता पर मनोवैज्ञानिक हमला है। आज सैकड़ों लोगों को फांसी की सजा सुनाई जा रही है कई लोगों को बिना मुकदमे के गिरफतार किया जा रहा है। जहां पर प्रतिरोध हो रहा है वहां लोगों पर न्यायिक एवं कानूनी हमला किया जा रहा है। आज की तारीख में प्रतिवर्ष दो लाख महिलायें प्रसव के दौरान दम तोड़ देती हैं 5 लाख बच्चे प्रतिवर्ष कुपोषण का शिकार हो रहे हैं। हरित क्रांति का नारा देकर नाटक किया जा रहा है। आज हरित क्रांति वाले राज्यांे में ही किसान आत्महत्यायें कर रहे हैं। हजारों लोग बाढ, सूखे की चपेट में आने से मर रहे हैं। क्या आज किसी भी दफतर में बिना पैसे के काम होते हैं। चुनाव की राजनीति हो रही है। जनता का अधिकार तभी तक है जब तक वह वोट नहीं देती। नक्सलबाड़ी का आन्देालन तब शुरू हुआ जब किसान जमींदारों से भूमि प्राप्त करने के लिये लड़े। 1947 के बाद भी ब्रिटिश सामाजिक, आर्थिक, ढांचा हम पर थोपा गया। नक्सलबाड़ी में जमीन के लिये लड़ाई लड़ी गई। लेकिन आज सरकार फौज के द्वारा हमारी जमीन, जंगल, नदियां बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को सौंप रही है। उसके बाद हमारे खनिजों से माल तैयार कर हमें ही बेचा जा रहा है। सरकार कहती है हम विकास कर रहे हैं। लेकिन असल में माओवादी देश के इतिहास को समझते हैं। माओवादियों पर तोहमत लगाई जाती है कि ये हिंसा करते हैं। लेकिन वेा चाहते हैं उत्पादन प्रक्रिया बदली जाये। लेकिन कभी भी शासक वर्ग इस व्यवस्था को बदलने के लिय तैयार नहीं हुआ। अगर हम विदेशों को समृद्ध बनायेंगे तो खुद कंगाल हो जायेंगे। हम वो माल बना रहे हैं जो अमेरिका को पसंद है। सरकार खेत के विकास का साधन नहीं दे सकी और कहती है विकास कर रहे हैं। हमारा कभी भी स्वतंत्र और आर्थिक विकास नहीं हुआ है। उन्हांेने कहा कि संसदीय धारा में लाल झंडे वाले जो लेाग चले गये हैं वो कभी भी कम्यूनिस्ट नहीं कहलाये जायेंगे। लोकतंत्र का पालन फौज भेजकर नहीं किया जा सकता। किसान मजदूरों की शक्ति प्रबल शक्ति है। हमें शासक वर्ग के खिलाफ असहमति तथा असहमत लोगों को एकजुट करना होगा और विरोध की राजनीति को संगठित करना होगा। जनता को मनोवैज्ञानिक ढंग से गुमराह करने की साजिश के खिलाफ समानान्तर आन्दोलन चलाना होगा। अन्यायपूर्ण नीतियों और संसदीय लूट के खिलाफ अपनी ताकत को एक करना होगा। लालगढ़ के 1200 गांवों में जनता की कमेटी कायम है। वो लोग बैठकर सोचते हैं कि गांवों का विकास कैसे होगा। चाहे सड़क का प्रबंध करना है या स्कूल का प्रबंध करना है या चिकित्सालय का प्रबंध करना है। हमारे देश में खेत में काम करने वालों को अकुशल मजदूर कहा जाता है। आज देश में खेती का विकास नहीं हो रहा है। अगर हम देश का विकास करना चाहते हैं तो हमें उस विकास नीति को अपनाना होगा जो जनता का विकास करे। हमें संसदीय प्रणाली की लूट के खिलाफ एकता पैदा करनी होगी। तब जाकर हम जनता पर जो युद्ध चल रहा है उसे ध्वस्त कर सकते हैं।

कन्वेन्शन के मुख्य वक्ता पूर्व आईएएस बीडी शर्मा ने कहा कि माओवाद का हौव्वा फैलाया जा रहा है वह कुछ भी नहीं है। दरअसल बात वहां के प्राकृतिक संसाधनों को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को बेचने के
लिये रचे जा रहे षडयन्त्र के खिलाफ आन्दोलित माओवादियों का दमन करने की है। बस्तर में आयरन इंडस्ट्री स्थापित करने के लिये मात्र 6 आदिवासी परिवारों को विस्थापित किया गया। जबकि वहां लाखों लोग निवास करते हैं। इसका कारण यह था कि वहां केवल 6 परिवारों के ही मतदाता पहचान पत्र बने थे। प्राकृतिक संसाधन पहले से ही जनता के थे तो इन पर सरकार का हक कैसे हो गया। जो गलती हिटलर ने की वहीं यहां की सरकार भी कर रही है। हिटलर ने अनेक युद्ध जीते पर सोवियत रूस से नहीं जीत सका। क्यों कि वहां उसकी लड़ाई समाज से थी। यहीं गलती यहां भी दोहराई जा रही है। छत्तीसगढ, झारखण्ड, बंगाल, उड़ीसा में सरकार समाज से लड़ रही है। राज्य की शक्ति कभी भी समाज की शक्ति पर हावी नहीं हो सकती। आदिवासी कभी भी अंग्रेजों के गुलाम नहीं रहे। आदिवासी क्षेत्रों में आजादी से पहले जनता का ही अधिकार था। अंग्रेजों के आगमन के बाद धीरे-धीरे राज्य ने उन पर नियंत्रण करने की कोशिश की। आदिवासी सदियों से अपने बारे में खुद तय करते आ रहे हैं। संविधान लागू होने का दिन आदिवासियों के लिये अंधेरी रात था। आदिवासी अपने झगड़े स्वयं निपटाते हैं। पुलिस तक बहुत कम मामले आते हैं। संविधान के लागू होने के बाद हमारे सभी अधिकार छिन लिये गये। मैं तो कहता हूॅं ग्रामीण भारत को जानबूझकर खत्म किया जा रहा है। यहां तक की मनरेगा में तक किसानों को अकुशल मजदूर बताया गया है।

वरिष्ठ पत्रकार पीसी जोशी ने सारे वक्ताओं की बातों को विस्तार से रखा। ने सारे वक्ताओं की बातों को
विस्तार से रखा। उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी को सरकार द्वारा चलाये जा रहे दमन के खिलाफ आवाज उठानी होगी। हम सभी जनपक्षीय ताकतों को एक होना होगा।

उत्तराखण्ड लोकवाहिनी के केन्द्रीय अध्यक्ष डा0 शमशेर सिंह बिष्ट ने कार्यक्रम का समापन करते हुए कहा कि जनता पर तरह तरह के जुल्म ढ़ाये जा रहे हैं। टिहरी बांध का पानी 832 मीटर तक बढ़ा

जानकारी के लिए धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद| वर्ड वैरिफ़िकेशन हटा दे |परेशानी होती है।
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