शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

सैनिक नेतृत्व होने के बाद भी प्रदेष के सैनिकों के हालातों में कोई सुधार आया है एैसा नहीं कहा जा सकता। प्रदेष में भाजपा के सत्ता में आते ही कई आवाजें देहरादून जाते जाते दम तोड़ गयी इनमें राज्य आन्दोलनकारियों की वेदना सबसे प्रमुख थी। प्रदेष में सैकडों सैनिक परिवारों की स्थिती आज भी जस की तस बनी हुई है। अल्मोड़ा जिले के हवालबाग ब्लॉक निवासी 84 वर्शीय बच्ची ंिसंह की स्थिती सैनिक परिवारों की दासतां बयां करती है। आजादी के पहले से ही देष के लिए कई जंग लड़ चुके इस सैनिक की बूढी आंखे अब पथरा गयी है। भारतीय सैनिक नं0 255232 सैपर यूनिट 1 टी.टी.सी.आर.आई.ई. में 20 मार्च 1943 से 1947 के जून माह तक सेवा देते रहे। इस दौरान उन्होंने द्वितीय विष्व युद्ध में भाग लिया और वर्मा स्टार वार से सम्मानित भी हुए। इसके पष्चात इस सैनिक ने 1962 में पुनः 1962 में देष के लिए चीन से युद्ध किया वहंी 1965 में यह सैनिक अपने परिवार से दूर देष के लिए पाकिस्तान से और पुनः बांगलादेष से लड़ा। इस दौरान पुनः इसे वार मैडल से सम्मानित किया गया। द्वितीय विष्व युद्ध की विभीशिका झेल चुके इस सैनिक को आज नाममात्र की पेंषन पर अपने परिवार का गुजार करना पढ़ रहा है। गांव में अपने टूटे मकान में रहने को मजबूर इस सैनिक को अपने इलाज से लेकर तमाम चीजों को लेकर अपने सैनिक सेवानिवृत्त पुत्र पर निर्भर है। उक्त सैनिक का कहना है कि यदि उसे उसे सरकार ने जंगी पंेषन और एक भू-खण्ड दिया होता तो उसके जीवन में परेषानीयां कुछ कम हो जाती । अल्मोड़ा जिले के हवालबाग ब्लॉक स्थित नाकोट गांव के पोस्ट बर्षीमी निवासी बच्ची सिंह के परिवार ने अनेक कश्ट झेले। इस दौरान उनके पुत्र रवीन्द्र ंिसंह द्वारा दिल्ली के रक्षा मंत्रालय , स्वंय देष के राश्ट्रपति एवं रक्षा मंत्रीयों से लेकर प्रदेष के सभी सैनिकों से सम्बंधित कार्यालयों के चक्कर काटे लेकिन हर जगह से उन्हें निराषा ही हाथ लगी। हर जगह से एक ही जवाब आया कि एक पेंषन पाने वाले को दूसरी पेषन पाने का अधिकार नहीं है। अभावग्रस्त सैनिक बच्ची सिंह जो उम्र के अंतिम पड़ाव पर है उसका साफ तौर पर मानना है कि एक गलतफहमी के चलते यह सब हो रहा है सरकार आज विकलांगों,वृद्धों व अन्य वंचितांे को जो पेंषन दे रही है वह वास्तव में पेंषन ही एक आर्थिक सहायता है ठीक ऐसी ही आर्थिक सहायता द्वितीय विष्वयुद्ध के युद्ध सेनानियों को भी दी जाती रही है,उनके अनुसार द्वितीय विष्वयुद्ध के सैनिकों को दो-दो पंेनषने दी जाती रही है, लेकिन बच्ची सिंह इससे वंचित रहने वाले षायद प्रदेष के पहले सैनिक होंगे। उनका यह भी आरोप है कि तमाम सरकारी कार्यक्रमों में दिखावे के लिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के विशय में बड़ी -बडी बातें कही जाती रही है या यूं कहें कि उनकी प्रदर्षनीयां लगाई जाती रही है लेकिन एक छोटी सी पेन्यूरी पंेषन और तराई में एक छोटे सें भू-खण्ड की मांग करते करते उनका पूरा जीवन बीत गया लेकिन सरकार के किसी कार्यालय से उन्हें कोई संतोशजनक जबाव नहीं मिला। आज बच्ची सिंह कुछ कहने और भाग दौड़ करने में असमर्थ है ,उनकी पत्नी का बहुत पहले देहावास हो चुका है, फौज से सेवानिवृत्त अपने पुत्र के साथ वे अपना जीवन बिताते है उनके पुत्र रवीन्द्र सिंह अब भी अपने पिता के टूटे हुए मकान और तमाम युद्धों के मैडलों कों लेेकर सरकारी कार्यालयों के चक्कर काट रहे है। इस उम्मीद के साथ कि षायद कभी कोई हाथ मदद के लिए उनकी ओर बढे। इधर उत्तराखण्ड सरकार के समाज कल्याण विभाग से भी उन्हें साफ तौर पर कह दिया गया है कि प्रदेष सरकार के वर्श 2002 में निकाले गये षासनादेष के अनुसार द्वितीय विष्व यु़द्ध पेंषन के आवेदकों को अब पंेषन देना बंद किया जा चुका है। पुश्कर बिश्ट अल्मोड़ा

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