सोमवार, 3 जनवरी 2011

उत्तराखण्डी समाज अपनी संस्कृति, सभ्यता और परम्पराओं के लिए जाना जाता है। यहां का साज आज भी कानून से अध्कि अपनी लोक संस्कृति और सामाजिक मान्यताओं से संचालित होता है। न्याय देवता के रूप में उत्तराखण्ड विशेषकर कुमाऊॅ मण्डल में पूजे जाने वाले ग्वल देवता जो गोलू देवता के नाम से भी जाने जाते ैहैं। वैसे तो चंपावत से लेकर अल्मोड़ा तक विभिन्न स्थानों पर इनके मंदिर है। अल्मोड़ा से 6 किमी दूरी पर स्थित चितई ग्वल मंदिर देश दुनिया में विख्यात है। चितई पंत गांव में बसा यह मंदिर अत्यंत प्राचीन है। गुजरात से यहां दवा व्यवसाय करने पहुंचे पंतों के पूर्वजों ने स्वप्न के आधर पर इस मंदिर का निर्माण करवाया। हिमांचल प्रदेश में मंशा देवी मंदिर की तर्ज पर यहां भी लाखों की संख्या में श्र(ालु प्रतिवर्ष आते हैं। क्षत्राीय समाज के अराध्य ग्वल देवता को अब सभी वर्गो के लोग मानने और पूजने लगे हैं। मान्यता है कि एक पराक्रमी, न्यायप्रिय और साहसी राजा के रूप में ग्वेल देवता ने यहां से नेपाल तक अन्याय और अत्याचार को समाप्त करने तथा हर जरूरत मंद के लिए मसीहा के रूप में कार्य किया। अपनी इसी छवि के कारण वे लोगों के बीच पूज्य हांे गये। कुमाऊॅ के लोक देवता के रूप में पूजे जाने वाले ग्वल देवता को गोलू, गैल्ल,चौघानी गोरिया, गोरिल आदि अनेक नामों से जाना जाता है। बौरारो पटटी के चौड़, भीमताल के निकट घोड़ाखाल, गरूड़, भनारी गांव, बसौट गांव, गागरीगोल, रानीबाग, मानिल सहित अनेक स्थानों पर इनके मंदिर है। चंपावत स्थित गोल्ल चौड़ का मंदिर इनका मूल मंदिर माना जाता है। जनगीतों, जागर, व कहावतों में गोलू की श्रुति की जाती है ओर उन्हें घर-घर पूजा जाता है। मान्यता है कि चंपावत के राजा हलराई के पौत्रा और झलराई के पुत्रा की पैदाईश के पीछे षड़यंत्रा किया गया। कथाकारों के अनुसार राजा की सात रानियांे से संतान न होने पर आठवीं रानी से जब ग्वल पैदा हुए तो अन्य रानियों ने ईष्यावश उन्हें पैदा होती ही बक्से में डाल पानी में बहा दिया। आठवीं रानी की आंखों में पटटी बांध्कर उसे यह बताया गया कि तूने सिलबटटे को जन्म दिया है। बहाया गया नवजात शिशु एक निः संतान ध्ीवर के जाल मंें पफंस गया और उसने उसे पाला। तेजस्वी बालक ने जब कुछ बड़ा होने पर ध्ीवर से जब घोड़ा मांगा तो उसने लकड़ी का घोड़ा उसे पकड़ा दिया। एक बार वह बालक उस लकड़ी के घोड़े को लेकर पानी पिलाने नदी तट पहुंचा,वहां राजा से उसकी मुलाकात हुई तो राजा ने उससे पूछा कि लकड़ी का घोड़ा भी पानी पीता है? एैसे में ग्वेल ने जवाब दिया कि जब रानी सिलबटटा पैदा कर सकती है तो लकड़ी का घोड़ा भी पानी पी सकता है। इस बात से ग्वेल के जन्म का राज खुला और राजा ने उसे पुत्रा के रूप में स्वीकार किया। एक जन प्रीय,उदार और पराक्रमी राजा के रूप में ग्वेल कुमाऊॅ के गांव गांव तक विख्यात हो गये। मान्यता है कि किसी भी प्रकार के अन्याय,उपेक्षा और पीड़ा मंे श्ऱ(ालु गोलू के दरबार जाता है ओर अपनी मन्नत वहां लिख कर टंाग आता है। न्याय देवता के रूप में विख्यात गोलू देवता उसकी मननत जरूर पूरी करते है। आज आदमी तो दूर अनेकों बार हड़ताली कर्मचारी संगठन भी अपनी मांगों को यहां टांगकर न्याय की गुहार लगाते हैं। उत्तराखण्ड में वनों को बचाने के लिए तमाम उपायों में स्वयं को विपफल पाते हुए वन विभाग ने स्वयं वन ग्वेल देवता को समर्पित किए हैं।एसएसबी सहित अनेक संगठनों ने समय समय पर इस मंदिर के जीर्णोधर और सौदर्यीकरण का कार्य भी करवाया है। ध्ीरे-ध्ीरे प्रदेष सरकार की इसका महत्व समझने लगी है। राज्य सरकार द्वारा बीते वर्श यहां महोत्सव भी करवाया था। वर्तमान में गायत्राी परिवार सहित अनेक संगठन यहां से बली प्रथा को समाप्त करने को आंदोलन भी संचालित कर रहे हैं। अल्मोड़ा,पिथौरागढ़,राजमार्ग में स्थित इस मंदिर में लाखों लोगों की अटूट आस्था और विष्वास है। इसी के निकट डाना गोलू का भी मंदिर है। एक पर्यटन और धर्मिक स्थल दोनों के रूप में इस स्थान को महत्व आऐ दिन बढ़ता जा रहा है।
नसीम अहमद

1 टिप्पणी:

  1. ग्वाल देव से सम्बंधित इस जानकारी हेतु धन्यवाद | टिप्पणियों की चिंता न करते हुए कृपया भविष्य में भी उपयोगी जानकारी से अवगत करायें |

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